ojha caste in hindi|ओझा अनुसूचित जनजाति

 छत्तीसगढ़ की ओझा अनुसूचित जनजाति, विशेष परंपराएं, तीज एवं त्यौहार 

बिसाऊ राम नेताम ओझा लेखक की ओर से-ओझा अनुसूचित जनजाति के बारे में कहीं पर लेख नहीं मिलेगा ना ही इंटरनेट में आपको सही और सटीक जानकारी मिलेगी। इस वेबसाइट पर सभी जानकारी सत्यापन कर सभी आंकड़ों का मूल्यांकन कर प्रमाणित जानकारी दी जा रही है। इस वेबसाइट का उद्देश्य ओझा जनजातियों के बारे में लोगों में फैली भ्रांति  को दूर करना उद्देश्य है एवं समस्त भारत में ओझा जनजाति को जागरूक करना एवं संगठित करना। 


छत्तीसगढ़ भाषायी  और सांस्कृतिक विविधता, जनजाति बहुलता और सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से समृद्ध होने के कारण ऐतिहासिक काल से ही विशिष्ट रहा है। 




विश्व के जनजाति मानचित्र में अफ्रीका के बाद भारत में जनजाति जनसंख्या की बहुलता है। इस दृष्टि से राज्य को जनजाति बहुल राज्य भी कह सकते हैं। राज्य की कुल जनसंख्या का 30.6 % जनजाति जनसंख्या है। भारत की कुल जनजाति जनसंख्या का 6.2 %  है। राज्य का सबसे बड़ा जनजाति समूह गोंड  है। 


प्रदेश में क्षेत्र के हिसाब से ओझा जनजाति कहां कहां पाए जाते हैं-
 


उत्तर- पूर्वी क्षेत्र 

इसके अंतर्गत रायगढ़,गरियाबंद  में ओझा जनजातियों का होने का खबर मिली है अभी तक इसमें कोई प्रमाणिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है लेकिन रायगढ़ में ओझा जाति के कुछ लोग बसे हुए हैं यह जानकारी हमारे टीम को अन आधिकारिक रूप से  प्राप्त हुई है। 


मध्यवर्ती क्षेत्र- 

इनमें धमतरी, राजनांदगांव, कवर्धा कुछ ग्राम पंचायतों में इन जिलों में ओझा जनजाति के लोग निवासरत हैं। 


दक्षिणी क्षेत्र- 


दक्षिणी क्षेत्र के अंतर्गत बस्तर ,दंतेवाड़ा तथा कांकेर जिले सम्मिलित हैं। यहां निवास करने वाली जनजातियों में गोंड, हलवा, मारिया, हल्बी, अबूझमाडीया, आदि जनजाति इनके साथ हमारे ओझा जनजाति के लोग भी निवासरत हैं। प्राय: बस्तर संभाग में जहां-जहां जनजाति के लोग हैं वहां ओझा जाति के लोग भी निवासरत हैं। 


ओझा अनुसूचित जनजाति -

ओ+झा 

ओ = हे 

झा= झाड़ फूंक करने वाला 

ओझा- हे झाड़ फूंकने वाला 

इस प्रकार से सभी जनजाति के लोग संबोधन करते थे यह झाड़-फूंक ने वाला यह शब्द बहुत लंबा और बोलने में भी अधिक ऊर्जा लगती है तो इसे ओझा संबोधन करके पुकारने लगे तभी से ओझा शब्द के उत्पत्ति माना जाता है। ओझा समाज के कई बुजुर्गों से संपर्क करने के बाद यह जानकारी और ज्यादा उजागर हुई और आधा से ज्यादा बुजुर्गों का मानना है कि बिल्कुल ओझा शब्द की जो उत्पत्ति है इसी प्रकार से हुई है।

ओझा अपना मूल निवास बस्तर संभाग को मानते हैं उनका मानना है कि ओझा जनजातियों का अस्तित्व महाभारत काल , रामायण काल से मानते हैं। 



और इसकी झलक आपको छत्तीसगढ़ के ओझा  जनजातियों में देखने को भी मिलेगी। सभी घर में ढहकी विशेष तौर से ओझा जनजातियों के घर में होता है, उसके साथ लोगों का मनोरंजन एवं झाड़-फूंक का काम करते हैं। 

जनजाति सांस्कृतिक तत्व- 

जनजाति समाज के अपने अलग नियम और मान्यताएं होती है। प्रदेश के जनजाति सांस्कृतिक तत्वों की प्रमुख विशेषताएं निम्न शीर्षकों में देखी जा सकती है आइए ओझा जनजाति के सांस्कृतिक तत्व के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझते हैं - 


भाषा 

आदिम जनजातियों की अपनी अलग भाषा (बोली) होती है, जिसे वे आदिकाल से बोलते आ रहे हैं। इनकी भाषा की कोई लिपि नहीं है। ओझा जनजाति के लोग छत्तीसगढ़ी, पारसी, साथी क्षेत्र विशेष के हिसाब से वहां के जनजाति समूह का भाषा भी बोलते हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा पर सीमावर्ती राज्यों की भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उड़ीसा, एवं मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में ओझा जाति निवासरत है और इनकी प्रमुख भाषा के रूप में पहचान की जा रही है पारसी और स्थानीय बोली के अनुसार आचार विचार रख रहे हैं।



सामाजिक विशेषताएं-
आदिवासी समाज का संगठन बंधुत्व पर आधारित है। अन्य समाजों की अपेक्षा यह अधिक प्रजातांत्रिक एवं सामाजिक होते हैं।
जनजातीय अर्थव्यवस्था में इनका महत्व पुरुषों से अधिक दिखाई देता है। इनमें संयुक्त एवं व्यक्तित्व दोनों परिवारों की परंपरा होती है, जिसमें टोटम(गढ़ चिन्हा) का विशेष महत्व होता है। समाज में सामुदायिक तक की भावना प्रबल होती है।
युवागृहों : जैसे - घोटूल, घूम कोरिया आदि का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जहां युवा आदिवासी जीवन दर्शन की शिक्षा लेते हैं।

गोत्र 

ओझा जनजाति में पूर्वजों का गोत्र अभी सरकारी रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है और ओझा संगठनों का यह मांग है कि उनका गोत्र को सरकारी आंकड़ों में मेंशन किया जाए। पुरवाईया,पखरवाल,मरार,पखिरबाल,भरेवा,सिंगूमारिया, आदि ओझा जाति के गोत्र हैं। जनगणना अधिकारियों के द्वारा शंका होने पर बाकी जनजातियों के गोत्र से ओझा जाति के गोत्र को जोड़ दिया गया और वह आज भी चले आ रहा है जैसे- नेताम, मंडावी, मरावी, भलावी, परते,उइके, मरकाम,आत्रम, कोवा आदि।


3 comments:

  1. गोत्र सिंगुमरिया भी है सर
    बहुत बढ़िया जानकारी दिए हो सर

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    1. सिंगुमारिया

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    2. धन्यवाद दादा सेवा जोहार

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