आदिवासी ओझा जाति की इतिहास क्या है ?
ओझा कौन से जाति में आते हैं ?
नमस्कार साथियों, आज के पोस्ट में मैं आपको महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहा हूं बहुत सारे इंटरनेट पर भ्रांति फैली हुई है आदिवासी ओझा जाति के संबंध में सरकारी रिकॉर्ड एवं ओझा जाति के इतिहास के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
बहुत सारे फिल्म एक्टर, क्रिकेटर, फेमस व्यक्तियों के सरनेम, कई राजनीतिक पार्टियों में भी अच्छे ऊंचे पद पर नेता हैं जिनके सरनेम ओझा है। क्या वह आदिवासी है या नहीं इसी के बारे में विस्तार से इस आर्टिकल को पढ़ें और अपने साथियों तक जानकारी को व्हाट्सएप, फेसबुक के माध्यम से शेयर करें।
ओझा सरनेम कौन से जाति के लोग लिखते हैं?
ओझा सरनेम ब्राह्मण जाति के लोग लिखते हैं। ब्राह्मण में भी जातियों के कई प्रकार होते हैं कई ब्राम्हण ओझा सरनेम लिखते हैं, एवं बहुत सारे ब्राह्मण झा सरनेम भी लिखते हैं।
ओझा कौन से जाति मैं आते हैं ?
ओझा आदिवासी समुदाय में आते हैं। जिनके सरनेम ओझा होते हैं वह आदिवासी नहीं कहलाते हैं। क्योंकि जाति और सरनेम दोनों अलग-अलग होती है। गोंड की उपजाति ओझा कहलाती है और जहां-जहां गोंड निवास करते हैं वहां ओझा जाति के लोग निवास करते हैं।
आदिवासी की गोंड जनजातियों की तरह ही ओझा जनजाति की परम्पराएं, जीवन शैली है।
ओझा जाति की उत्पत्ति गोंड जाति का उपजाति मानते हैं।
क्या उत्तर प्रदेश में आदिवासी ओझा जाति के लोग निवास करते हैं?
जी हां गोंड, नायक, धुरिया, के साथ ओझा जाति के लोग उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में निवास करते हैं। बहुत सारे ब्राह्मणों ने ओझा सरनेम के आड़ में सरकार को धूल झोंकने के काम किए हैं। और इसी वजह से आज उत्तर प्रदेश में आदिवासी ओझा जाति संकट में है।
आदिवासी ओझा जाति के लोग कौन-कौन से राज्य में निवास कर रहे हैं?
जंहा -जंहा गोंड जाति है वंहा ओझा जाति के लोग निवास करते हैं ,जनसँख्या की दृष्टी से देखा जाय तो ओझा जनजाति मध्यप्रदेश में सबसे अधिक हैं। लेकिन धीरे- धीरे वे स्थान परिवर्तन करने लगे और महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़ ,तेलंगाना ,ओडिशा,उत्तरप्रदेश की ओर चले गए।
आरंभिक दौर में इनकी बसाहट छत्तीसगढ़ फिर मध्यप्रदेश के बेतुल घोड़ाडोंगरी व शिवनी जिले में अधिकाधिक होती गई।
सरकारी आंकड़ों में कौन से नंबर पर अंकित है?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन )अधिनियम ,1976 के अनुसार और 2000 के अधिनियम 28 द्वारा डाला गया है । छत्तीसगढ़ में 16 ,मध्यप्रदेश में 16 ,महाराष्ट्र में 18 नंबर पर अंकित है।
बाकी के राज्यों में सरकारी आंकड़ों में दर्ज क्यों नहीं है?
ओझा जाति अत्यंत पिछड़ी जाति है एवं शिक्षा भी बहुत ही दयनीय स्थिति में है, भारत देश के आजाद होने के बाद भी ओझा एक ऐसी जाती है जहां विकास के नाम पर आज भी शून्य पर खड़ी है। और यही स्थिति पहले भी थी जब सरकार द्वारा जनगणना कराई गई। तो सभी से सवाल जवाब किया जाता है उसी प्रकार से ओझा जातियों के लोगों से भी सवाल जवाब किया गया आपके गोत्र क्या है? ओझा जाति के गोत्र भी गोंड जाति के समान ही है मंडावी ,नेताम ,उइके ,भलावी पर्ते, कुंजाम, आत्रम , कोवा इत्यादि। हालांकि ओझा जाति के गोत्र अलग होते हैं उस समय में जानकारी के अभाव में सभी लोग गोंड जाति के गोत्र बताने लगे और जनगणना अधिकारियों को भी जानकारी नहीं होती थी इस कारण से उन्हें गोंड जाति में सम्मिलित कर दिए हैं। जैसे उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना यहां अभी सरकार से बातचीत हो रही है और जल्दी सरकारी आंकड़ों में दर्ज की जाएगी।
ओझा जाति के गोत्र कौन कौन से हैं?
ओझा जाति के गोत्र- मरार,बड़े मरार,छोटे मरार,पुरवाईया,पखरवाल,मरार,पखिरबाल,भरेवा,सिंगूमारिया, पखिरबाल आदि ओझा जाति के गोत्र हैं।
ओझा जाति के लोगो का भाषा क्या है ?
ओझा जाति के लोग गोंड जाति के तरह गोंडी , पारसी भाषा बोलते है ।
क्या ओझा जाति के लोगों का आजादी आंदोलन में कोई सहयोग है?
स्वतंत्र रहने वाले ओझाओ ने अंग्रेजी शासन को लोहे के चने चबवा दिए थे भारत देश की आजादी में ओझा जनजाति का भी योगदान रहा है। मध्य प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
जिला व केन्द्रीय सम्मान निधि नियम 1972 नियम 2,3 के अंर्तगत घोषित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में दर्ज है। स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से पूर्व
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 15 अगस्त 1972 को ताम्रपात्र मंशु ओझा पिता उमराव ओझा को भेट किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक घोड़ाडोंगरी में आज भी मंशु उमराव ओझा का नाम अंकित है। ओझा समाज के गौरव
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और शायद यही कारण है कि अंग्रेजों के साथ स्थानीय रियासतों के शासकों ने भी ओझाओ की स्वतंत्रता में कभी बाधक बनने का साहस नहीं किया।
अपनी उत्पत्ति के आरंभ से मेहनतकश और मस्ती में डूबे रहने वाले ओझा खुद को प्रकृति के पूजक एवं निकट रहना और रखना पसंद करते रहे हैं और इन्हीं कारणों से पहाड़ों के बीच रहना उन्हें आज भी पसंद है।
जनपदीय सामाजिक व्यवस्था से परे वे अलग-थलग ही रहना पसंद करते हैं। देश की दूसरी जनजाति की तरह ही ओझा भी स्वयं को धरती पुत्र मानते हैं और वनोपज से अपना जीवन-यापन करते हैं।
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