adivasi ojha culture and tradition in hindi | आदिवासी ओझा जनजाति की सांस्कृतिक विशेषताएं

 
आदिवासी ओझा जनजाति की सांस्कृतिक विशेषताएं 


आज के इस आर्टिकल में मै आदिवासी ओझा जनजातियों के विभिन्न संस्कारों के बारे में विस्तार से वर्णन करूंगा। यदि पोस्ट पसंद आता है या जानकारी में कहीं त्रुटि हुई है तो आप हमें कमेंट करके सुझाव दे सकते हैं। अच्छा लगे तो हमारे आदिवासी ओझा भाइयों तक इस पोस्ट को व्हाट्सएप,फेसबुक के माध्यम से जरूर शेयर कर सकते हैं समाज के विकास में एक शेयर एक कमेंट का योगदान हम चाहते हैं जय मंशु ओझा! जय सेवा!

आदिवासी ओझा  समाज




        1.जन्म संस्कार

शिशु जन्म को ओझा जनजातियों में प्राकृतिक घटना माना जाता है। ओझा जनजाति यह भी मानते हैं कि यह हमारे पूर्वज दादा परदादा का अवतार है या दादी दादी की अवतार है। गोंड इसे दुल्हादेव एवं झलना देवी की अनुकंपा या आशीर्वाद मानते हैं। 

2.नामकरण- बच्चे का नामकरण जीवन का पहला संस्कार होता है। 

यह संस्कार अलग जनजातियों में अलग - अलग अवधियो में संपन्न किया जाता है प्राय: ओझा जातियों में गर्मियों के समय में व्यस्तता कम होती है ऐसे समय को चुनते है संस्कार सम्पन्न किया जाता है। छत्तीसगढ़ी में इसे छठी भी कहते हैं और ओझा भाषा में इसे मनखे जनिस कहते हैं। बच्चे का नाम नदी या पहाड़ दिन, महीना, ऋतू या किसी विशिष्ट अवसर के नाम पर रखा जाता है- जैसे नरबदिया, बुधिया, वैशाली या अंकालू  आदि।


आदिवासी ओझा जाति में विवाह कैसे और कितने प्रकार से होते हैं? 

  1. विवाह पद्धतियां 

आदिवासी ओझा जनजाति में एक विवाह (मोनोगैमी)और बहु विवाह (पोलोगैमी) दोनों विद्यमान है। 

सामान्यत:इनमें बहु विवाह अधिक प्रचलित है। बहु विवाह का आर्थिक स्थिति से सीधा संबंध होता है आदिवासी जनजातियों में बिंझवारो के मुखिया वालों के मुख्य पांच या छ:पत्नियां भी रख लेते हैं। 

इनमें मुख्यतः क्रय विवाह, सेवा विवाह, अपहरण विवाह, गंधर्व विवाह, हट विवाह,एवं विनिमय विवाह की पद्धतियां पाई जाती है। सामान्य विवाह को बस्तर में पेडुल कहा जाता है। 




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2.दूध लौटावा 

मैं ममरे-फूफरे, भाई-बहनों में विवाह अधिमान्य होता है। जब लड़की का विवाह कहीं नहीं होता है, तब उसके पास प्रथा अनुसार बुआ या मामा के लड़के से विवाह का विकल्प सुरक्षित रहता है। 

3.सेवा विवाह- 

अधिकांश ऐसे व्यक्ति, जो वधू मूल्य चुकाने में असमर्थ होते हैं, वह एक निश्चित अवधि सामान्यतः 5 वर्षों तक भावी  ससुर के घर रहकर कार्य करते हैं। 

4.क्रय विवाह - 

आदिवासी ओझा जातियों में खास करके महाराष्ट्र में वधू मूल्य देकर पत्नी प्राप्त करने की प्रथा है।  जिसे पारिंग धन भी कहते हैं। 


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विस्तृत जानकारी के लिए नेक्स्ट पार्ट के इंतजार कीजिए। तब तक के टेलीग्राम चैनल में हमें फॉलो कर सकते हैं फेसबुक पर फॉलो कर सकते हैं व्हाट्सएप में शेयर कर सकते हैं बहुत-बहुत धन्यवाद पढ़ने के लिए। 


आने वाले लेख में आपको बाकी जो विवाह के प्रक्रिया है उसके बारे में जानकारी दी जाएगी, धर्म, उत्सव, जनजाति युवा ग्रह, घोटुल प्रथा के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेंगे। जनजातियों के लोकनाट्य कौन-कौन से होते हैं वह समाज के कौन से संगीत होते हैं इन विषयों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी तब तक के लिए धन्यवाद।








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